उत्तम विचार
मनुष्य को उसके कर्म ही दण्डित करते है
और उसके कर्म ही उसे पुरस्कृत करते है,
मनुष्य व्यर्थ ही ईश्वर को अपने दुखों का दोषी ठहराता है।
व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले मर जाता है और वो
अपने अच्छे और बुरे कर्मो का फल खुद ही भुगतता है।
मनुष्य को उसके कर्म ही दण्डित करते है
और उसके कर्म ही उसे पुरस्कृत करते है,
मनुष्य व्यर्थ ही ईश्वर को अपने दुखों का दोषी ठहराता है।
व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले मर जाता है और वो
अपने अच्छे और बुरे कर्मो का फल खुद ही भुगतता है।
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