एक बूढ़ा लगभग रोज अखबार की दुकान पर आकर
कई अखबार उलट पलट कर देखता, एकाध खरीद भी लेता कभी।
कई दिनों बाद दुकानदार ने पूछा,
” बाबा ,आप क्या खोजते हो रोज इन अखबारी पन्नों में? ”
” अपनी तस्वीर ” बूढ़े ने कहा!
क्या आपने छपने को भेजी है कहीं ?
नहीं ,पर शायद मेरे बच्चों ने भेजी हो छपने के लिए ,गुमशुदा के कॉलम में ।
(ये कहानी ही सही पर ये आज के समाज का
एक घिनौना सच जरूर उघाड़ती है और पूरी शिद्दत के साथ उघाड़ती है )
कई अखबार उलट पलट कर देखता, एकाध खरीद भी लेता कभी।
कई दिनों बाद दुकानदार ने पूछा,
” बाबा ,आप क्या खोजते हो रोज इन अखबारी पन्नों में? ”
” अपनी तस्वीर ” बूढ़े ने कहा!
क्या आपने छपने को भेजी है कहीं ?
नहीं ,पर शायद मेरे बच्चों ने भेजी हो छपने के लिए ,गुमशुदा के कॉलम में ।
(ये कहानी ही सही पर ये आज के समाज का
एक घिनौना सच जरूर उघाड़ती है और पूरी शिद्दत के साथ उघाड़ती है )
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