किसी के घर जाओ तो
अपनी “आंखो” को इतना काबू में रखो
कि उसके “सत्कार” के अलावा
उसकी “कमियाँ” न दिखे
और जब उसके घर से निकलो तो
अपनी “ज़ुबान” काबू में रखो
ताकि उसके घर की
“इज़्ज़त” और “राज़”
दोनो सलामत रहे।
अपनी “आंखो” को इतना काबू में रखो
कि उसके “सत्कार” के अलावा
उसकी “कमियाँ” न दिखे
और जब उसके घर से निकलो तो
अपनी “ज़ुबान” काबू में रखो
ताकि उसके घर की
“इज़्ज़त” और “राज़”
दोनो सलामत रहे।
Comments
Post a Comment
Welcome...